नागपुर न्यूज डेस्क: बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने अहम फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि किसी विधवा को उसके ससुराल में रहने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति उर्मिला जोशीफाल्के ने यह निर्णय दिया और कहा कि ऐसा करना घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत आर्थिक और भावनात्मक शोषण के समान है।
मामला नागपुर का है, जहां एक महिला की शादी कुछ ही समय पहले हुई थी और उसके पति का निधन हो गया। महिला के कोई संतान नहीं थी और उसके ससुरालवालों ने उसे घर से निकाल दिया। महिला ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, और निचली अदालत ने उसके पक्ष में फैसला देते हुए उसे ससुराल में रहने का अधिकार दिया।
हालांकि, महिला के जेठ ने इस आदेश के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में अपील की, यह मांग करते हुए कि विधवा को पारिवारिक घर में रहने की अनुमति देने वाला आदेश रद्द किया जाए।
न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि अधिनियम की धारा 17 के तहत साझा घर में रहने वाली प्रत्येक महिला को वैधानिक निवास का अधिकार प्राप्त है, चाहे वह वहां लगातार रही हो या नहीं। उन्होंने कहा कि विधवा को घर या संपत्ति तक पहुँच से वंचित करना आर्थिक और मानसिक शोषण के बराबर है।